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1. तुझ को अपना समजा था

तुझ को अपना समजा था

मैं कैसा दीवाना था

 

मैं था रेत किनारों की

तू एक चड़ता दरिया था

 

सहराओं की प्यास था मैं

तू सावन की बरखा था

 

दश्त-ए बला की धुप था मैं

तू नजरों का धोका था

 

मैं था बर्ग-ए आवारा

तू पुरवा का झोंका था

 

तुझ को ख्वाब में देख के मैं

गहरी नींद से चौंका था

 

मैं ने तुझ को यूँ देखा

जैसे एक सपना था

 

मैं ने अपनी गजलों में

तेरा रूप सजाया था

 

राहील-ए मोहबत पर रख कर

पहर-रों तुझ को पर्हता था

 

लफ्जों के पे-रहूं से

मैं ने तुझको धानम्पा था

 

मेरी फिक्र की मस्नाध पर

एक तू ही तू बैठा था

 

मैं खुद से भी रूठ गया

तुझे मनाने आया था

 

दुनिया छाओं में बैठी थी

मैं ने पैर लगाया था

 

मेरे जिस्म के सहरा पर

तेरे प्यार का साया था

 

तेरी जुल्फ की छाओं में

तिष्णा चैन से सोया था

2. हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

सूरत-ए रंग-ए हया रुख पे बिखेर जाऊँगा

 

तू मुझे ढूंढता रह जाये गा मंजिल मंजिल

मैं तो झोंका हूँ दबे पाओं गुजर जाऊँगा

 

डूब जाऊँगा मैं लम्हों के समंदर में तो क्या

कुल्जुम-ए वक्त को पयाब तो कर जाऊँगा

 

यह मुसाफत के केरे कोस यह राहों का अजाब

दस्त-ए बे-साया के अशोब से मर जा-ऊँ गा

 

ले उड़े गा मुझे फिर कोई हवा का झोंका

मुझे रैग-ए रवां बन के बिखर जा-ऊँ गा

3. हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

 

हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

सूरत-ए रंग-ए हया रुख पे बिखेर जा-ऊँ गा

 

तू मुझे ढूंढता रह जाये गा मंजिल मंजिल

मैं तो झोंका हूँ दबे पाओं गुजर जा-ऊँ गा

 

डूब जा-ऊँ गा मैं लम्हों के समंदर में तो क्या

कुल्जुम-ए वक्त को पयाब तो कर जा-ऊँ गा

 

यह मुसाफत के केरे कोस यह राहों का अजाब

दस्त-ए बे-साया के अशोब से मर जा-ऊँ गा

 

ले उड़ेगा मुझे फिर कोई हवा का झोंका

मुझे रैग-ए रवां बन के बिखर जा-ऊँ गा

4. कयामत से अपने कोई तो ऊंचा दिखा-ई दे

कयामत से अपने कोई तो ऊंचा दिखा-ई दे

हम देखते रहे कोई हम सा दिखाई दे

 

सूरज के डूबने पे यह नक्शा दिखाई दे

पै-रों से बढ़ कर पैर का साया दिखाई दे

 

पत्थर यह किसने फेंका है यादों की झील में

धुंदला सा एक अक्स लराजता दिखाई दे

 

धरा है खुशियों ने फरेब-ए नज्र का रूप

रैग-ए रवां भी प्यास में दरिया दिखाई दे

 

देखि है हम ने वस-अतः-ए सहराये जिंदगी

जेरा भी अपने आप में दुनिया दिखाई दे

 

मा-ए तमाम में हो तेरा पर तू-ए-जमाल

एक रोज तोह यह चाँद भी तुझ सा दिखाई दे

 

तिष्णा हमें यह किस ने खुद्दारा बना दिया

हर आईने में अपना ही जलवा दिखाई दे

5. हम को बना दिया है जमाने ने खुद-पसंद

हम को बना दिया है जमाने ने खुद-पसंद

करते हैं अपने आप में तुझ को तलाश हम

 

कांधा न दे सका हमें यह शहर-ए अशनां

तनहा उठा-ए फिरते रहे अपनी लाश हम

 

ले जाये देखें कहाँ यह सिर-सिर-ए हयात

किस दश्त में न जाने रखें बो-दो-बश हम

 

शीशे का जिस्म ओढ़ के निकले थे शहर में

अब क्या गिला करें के हुए पाश पाश हम

 

है कारोबार-ए जीस्त में हम से हम-हमी

ऐ दोस्त नब्ज-ए वक्त का हैं एर्ता-आश हम

 

जो हो सकी ना वक्त के मरहम से मंदमिल

हैं चारा-ए हयात की ऐसी खराश हम

 

तिष्णा हमारे नाम पे लगती हैं बारियाँ

दस्त-ए कुमार बाज में हैं गोया ताश हम

6. चूमे है नज्र वो लब-ओ रुखसार अभी तक

चूमे है नज्र वो लब-ओ रुखसार अभी तक

आँखों मैं है एक लम्हा-ए दीदार अभी तक

 

चमकी थी कभी बर्क नज्र खैमा-ए जान पर

लर्जां हैं मगर रूह की दिवार अभी तक

 

बजती हैं मेरे कान में अब तक तेरी सांसें

सुनता हूँ तेरे कुर्ब की झंकार अभी तक

 

फूलों से कभी एक ता-लुख था हमारा

दामन से उलझता है सिर-ए खर अभी तक

 

खून-ए गुल वाल-वाला से जो गुल रंग हुई थी

है दस्त-ए सबा में वही तलवार अभी तक

 

ओझल है निगाहों से वो एक साज मुजसिम

एक मौज-ए सदा है पेस-ए दिवार अभी तक

 

सूरज तू सवा नैजे पे आ पहुंचा है तिष्णा

दिखे न मगर सुबह के आसार अभी तक

7. तबिश-ए खून-ए शाईदान-ए वफा रहने दो

तबिश-ए खून-ए शाईदान-ए वफा रहने दो

मेरे खूनों पे कफ-ए दस्त-ए हिना रहने दो

 

जुल्फ से शोला-ए आरिज को ढका रहने दो

इस दहकते हुए सूरज पे घटा रहने दो

 

बुज ग-ई शमा-ए हरम गुल हैं कलीसा के चराग

दर-ए मैखाना तू इस वक्त खुला रहने दो

 

ना तुम्हें इश्क से निस्बत न हमें गम से फरार

रोज का अब नया एहाद-ए वफा रहने दो

 

हो चुके शहर-ए निगारां के दरीचे वीरान

कोई पैगाम न ले-आये गी सबा रहने दो

 

कुचा-ए इश्क में बेनाम-ओ निशान है तिष्णा

इस को ना वक्फ-ए अदाब-ए वफा रहने दो

8. कोई दिवार थी न साया था

कोई दिवार थी न साया था

जिंदगी थी के एक सेहरा था

 

वो मिला दश्त-ए ख्वाब में अक्सर

आने शेरों में जिस को लिखा था

 

जान-ए बज्म-ए हयात तेरे बगैर

मैं हर इक अंजुमन में तन्हा था

 

फिर मुझे मौत भी नहीं आ-ई

क्यों तुझे जिंदगी बनाया था

 

आईने से भला कहा निस्बत

दिल बड़ी खामोशी से टुटा था

 

मैं था पथ-झड़ का बर्ग-ए आवारा

तू खिजाँ की हवा का झोंका था

 

मेरे शानों से तू ने आखिर-ए शब

अपनी जुल्फों को जब सिमटा था

 

एक कयामत सी दिल में जगी थी

ऐ महशर सा मुझ पे गुजरा था

 

चाँद में भी तेरी शबाहत थी

फूल तेरी महेक से महेका था

 

अब सिर-ए बज्म है वो हशर बदोश

वो जो तन्हाइयों में खिलता था

 

मुझ को दीजिये सजा-ऐ जुर्म सदा

में ने कफ्ल-ए सकूत तोडा था

 

मैं ने ही तैरगी के काइमों पर

रोशनियों का तीर फेंका था

9. मताये जान सिर-ए बाजार लूट-वा-ने को जी चाहा

 

मताये जान सिर-ए बाजार लूट-वा-ने को जी चाहा

उसी बे महेर के कूचे में फिर जाने को जी चाहा

 

शिकस्त-ए दिल की खामोशी गिरां कुछ इस कद्र गुजरी

दूकान-ए शीशा गर पे संग बरसने को जी चाहा

 

कहीं का भी ना रखा तन्हा-ए अहसास ने मुझ को

मेरा हर फूल के हमरा मुरझाने को जी चाहा

 

यह अनरोहे फरोंघ-ए आगाही भी एक कयामत है

हजारों बार इस जीने से मर जाने को जी चाहा

 

हजूम-ए यास ने जब अश्क भी छोड़े ना आँखों में

लब-ए गुल पर हंसी बन कर बिखर जाने को जी चाहा

 

फिजा-ऐन चुप हैरासां शहर गलियाँ दम-बा-छोड़ तिष्णा

मेरा संग सदा ऐसे में बरसने को जी चाहा

10. तू फूल फूल रहे खुशबुओं के आँचल में

तू फूल फूल रहे खुशबुओं के आँचल में

मैं खार खार हूँ आबलों के जंगल में

 

तेरा बदन कह तेरे पैराहन से छनता है

कह जैसे चांदनी लिपटी हो सुर्ख मलमल में

 

मेरी सहर के उजाले हैं तेरे आरिज पर

मेरी खुशबू की सियाही है काजल में

 

हजूम-ए मह वाशां था वफा के पनघट पर

बदन की प्यास भरी थी सभी की छागेल में

 

अय निम शब के मुसाफिर बताह कीधर जा-ऐं

छुपा लिया है चरागों को तू ने आँचल में

 

हर एक शाख के दिल में है रंग-ओ बू की तडप

नमो का झोक है रक्साँ हर एक को नप्ल में

 

यह आज छूटी है किस के लहू की महताबी

यह किस ने जश्न-चरागाँ किया है मक्तल में

 

तोह इस जमीन में चिंगारिओं की फसल ना बो

उगी जो आग तो फैले गई सरे जंगल में

 

जमीन की प्यास बुझे भी तो किस तरह तिष्णा

कह एक बूंद भी बाकि नही है बादल में

11. रह कर समंदर में समंदर से जुदा हूँ

रह कर समंदर में समंदर से जुदा हूँ

कतरा हूँ मगर जर्फ में दरिया से बडा हूँ

 

हैं अर्ज-ओ-समा मेरे ही बिखरे हुए तुकडे

आईना हूँ और दश्त-ए-माशियत से गिरा हूँ

 

पत्थर से डराओ ना मुझे संग नझा दो

शीशे का बदन ले के चटानों पे खड़ा हूँ

 

अक्सर यह हुआ है के खयालों के उफक में

मैं शाम के सूरज की तरह डूब गया हूँ

 

खुल जाऊं गई के उकदा-ए-असान की तरह मैं

आह पेराहन-ए निस्थ तेरा बून्द-ए काबा हूँ

 

दाम लेने की मोहलत मुझे आह बाद-ए सफर दे

पत्ता हूँ अभी शाख की बाँहों से गिरा हूँ

 

जिंदा हूँ के जीने का मुझे हुकम मिला है

नाकर्दा गुनाहों की सजा काट रहा हूँ

 

आया ना मायेस्सीर जिन्हें पैराहूं-ए तहरीर

उन लफ्जों की हसरत हूँ तमना हूँ दुआ हूँ

 

तिष्णा मेरी मंजिल का पता है ना ठिकाना

मैं मौजा-ए दर्या हूँ कह सहरा की हवा हूँ

12. चला था मैं तो शरीक-ए-सफर ना था कोई

चला था मैं तो शरीक-ए-सफर ना था कोई

लहू लहान सिर-ए राह गुजर ना था कोई

 

किसी असीर में देखी ना जुर्रत-ए परवाज

खुली फिजायें थीं बे बाल-ओ पर ना था कोई

 

मिला ना शहर-ए हुनर में भी कोई अहल-ए हुनर

थी मेरे हाथ में दस्तार सिर ना था कोई

 

निशान-ए जदा-ए मंजील की जुस्तजू थी मुझे

थे रहबर तो सभी हम सफर ना था कोई

 

वो जिंदगी थी खुदाया के दश्त-ए बे साया

गमों की धुप कडी थी शजर न था कोई

 

उस अंजुमन में सभी सिरफरोश थे तिष्णा

पडा जो वक्त तो फिर वार पर ना था कोई

13. मैं शौक-ए रंग रंग हूँ खयाल की उमँग हूँ_

मैं शौक-ए रंग रंग हूँ खयाल की उमँग हूँ

मैं सुबह का पियाम हूँ मैं शाम की तरंग हूँ

 

सिपाह-ए खैर-ओ शेर हैं सफ बा सफ मेरे वजूद हैं

मैं रज्म-गाह-ए जिंदगी में कर्बला की जंग हूँ

 

बेढंगी भी छुप गई नकूश भी उभर गए

मैं जिंदगी के जीस्म की अजब काबा-ए तंग हूँ

 

बिसात-ए रोजे-ओ शब पे लग रही हैं रोज बाजियां

मैं जीत के भी खुश नही मैं हार के भी दंग हूँ

 

न छुप सके गी कयामत-ए खयाल की बेढंगी

यह जहमत-ए लिबास क्यों मैं जिंदाहि का नंघ हूँ

 

हैं रिश्ता-ए अना की बेड़ियाँ हमारे पाओं में

चराग-ए शोला सिर है तो मैं पैर जला पतंग हूँ

 

दिल-ओ नजर रफशां हुए हर एक चोट पर

तू जर्ब-ए तीशा-ए सीतम है मैं फुगाँ-ए सुंग हूँ

 

कहीं तो छाँव जुल्फ की कहें तो सैझ नर्म सी

मैं नींद का हूँ रात-जगा मैं ख्वाब-ए शौक रंग हूँ

 

कमल दिल-नवाजियाँ कमल दोस्त दारियाँ

कभी वो फूल फूल है कभी मैं संग संग हूँ

 

नफ्स नफ्स मेरी महेक नजर नजर मेरी तलब

दहेक उठे जो आरजुओं पे दिल की उमंग हूँ

14. अरसा-ए हस्ती से हम नाकामियाँ चुनते रहे

अरसा-ए हस्ती से हम नाकामियाँ चुनते रहे

रोशनी बोते रहे तारीकियाँ चुनते रहे

 

लोग मोती लाये गहरे पानियो की गोद से

और हम साहिल पे बैठे सीपियाँ चुनते रहे

 

जिंदगी भर मस्लेहात बीनी रहा अपना मीजाज

उम्र भर अंदेशा-ए सोदू जियां चुनते रहे

 

अपने अक्स-ए जात को करते रहे शीराजह बंद

आईना खाणूसे हम परछाइयाँ चुनते रहे

 

सिर फिरे दर्याओं की मौजों पे डाला हम ने हाथ

कुल्जुम-ए हस्ती से हम तुघ्यानियाँ चुनते रहे

 

हम थे और तनहा-ई का दरया-ए ना-पैदा किनारा

तेरी यादों के भ-वर से हीच-कियाँ चुनते रहे

 

कर दिया अहल होवीस ने दामन-ए गुल तार तार

और हम मलबूस-ए गुल की धज-जीयाँ चुनते रहे

15. रैग-ए सेहरा भी, धुप भी हम थे

रैग-ए सेहरा भी, धुप भी हम थे

एक दुनिया सराब की हम थे

 

जो खेंचि थी उफक के माथे पर

वोह सुनहरी लकीर भी हम थे

 

चाक दामन-ए शब किया जिस ने

सिर फिरी सी वो रोशनी हम थे

 

एक तमाशा थे हम सिर-ए बाजार

बज्म-ए खुबान की दिलकशी हम थे

 

जो हवाओं के ताक में भी जले

उन चरागों की रोशनी हम थे

 

चाक-ए पैर रहूं-ए हियात थे हम

अपना रक्स बेढंगी हम थे

 

था बहारों मैं रंग ओ बू हम से

शे-हर गुल की बहार भी हम थे

 

मौजा-ए जिंदगी का शोर्त है हम

दश्त-ए हस्ती की खामोशी हम थे

 

था हम-ही से वो जशन-ए बज्म-ए हियात

केर्यी-अये जान की रोशनी हम थे

 

तिष्णा उस दौर-ए मे परस्ती में

अपना पंदार-ए तश्नगी हम थे

16. तू कुल्जम था मैं दरया था

तू कुलजुम था मैं दरया था

मुझ को तुझ से ही मिलना था

 

मैं ने तेरा चाँद सा मुखड़ा

अपनी नजरों से चूमा था

 

इस अनबूहे सर्वर कदान में

तू ही तू सब से ऊंचा था

 

मेरे प्यार का पहला जुमला

तेरे आरिज पर चमका था

 

तू ने नजरें नीची कर के

प्यार का जब इकरार किया था

 

तेरी पलकें भीग चलीं थीं

तेरा आँचल धलक गया था

 

तू मेरी बाँहों में आ कर

फूल की सूरत खिल उठा था

 

मेरी पलकों के गोशों पर

तेरे आरिज का गाजा था

 

तेरे जिस्म की हर टहनी में

मेरे साँसों का झोंका था

 

तेरी जुल्फो के पेंचों में

मेरी पलकों का शाना था

 

तेरे लबों की बुन्यादों पर

मेरे होंठों का मलबा था

 

सुर्ख हु-ईं थी तेरी आँखें

देर तलक मैं भी जागा था

 

बरसों तेरे जिस्म का चंदन

मेरे पहलू में सुलगता था

 

मैं ने अपने प्यार का सूरज

तेरे माथे पर तांका था

 

अपनी दुआ-एँ नीम शबी में

मैं ने तुझ को ही माँगा था

 

जान ओ दिल से टूट के मैं मे

एक तुझी को तो चाहा था

 

तेरे सांसों की खुशबू से

मेरा तन मन महेक उठा था

 

तिष्णा ने तेरी चाहत का

शीश महेल तामीर किया था

17. श-हेर में कत्ल-ए आम हुआ था

श-हेर में कत्ल-ए आम हुआ था

मैं भी शहीद दस्ते जफा था

 

ऐ बरसात बनाने वाले

मैं भी बरसों का प्यासा था

 

बाघ में फूल खिलाने वाले

मैं ने भी हंसना चाहा था

 

सिप को मोती बक्श-ने वाले

मैं भी बारिश का कतरा था

 

ऐ मीठी नींदों के खालिक

देर तलक मैं क्यों जगा था

 

सच-चे ख्वाब दिखाने वाले

मेरा सपना झूठा था

 

मेरे जज्बों के सहरा में

धुप ने क्यों डेरा डाला था

 

मेरी रात के नील गगन का

चाँद भी रास्ता भूल गया था

 

सब को खुशियाँ बाँट-ने वाले

मुझ को क्यों गम बख्शा था

 

दुनिया का दिल रखने वाले

तिष्णा से क्यों रूठ गया था

18. जब तू मुझ से बिछड़ रहा था

जब तू मुझ से बिछड़ रहा था

फुट फुट के दिल रोया था

 

तेरी पलकों पर शबनम थी

मेरी आंखों में दरिया था

 

तेरी जुल्फो में अफ्शां थी

मेरी राह में अँधेरा था

 

दिल पे कयामत टूट रही थी

सब्र का दामन छूट गया था

 

प्यार से मेरा हाथ दबा कर

तू ने सीने पर रखा था

 

जलते होंठों से फिर तू ने

मेरे हात को चुम लिया था

 

मेरे हात की पुश्त पे सजनी

तेरे होंठों का नक्शा था

 

फिर मैं तुझ से रुखसत हो कर

जीवन रास्तों में तन्हा था

 

अंजानी से हर मंजील थी

सुना सुना हर रास्ता था

 

आज वो सब कुछ यूँ लगता है

जैसे की सपना देखा था

 

कुर्ब भी सपना प्यार भी सपना

सपना भी कैसा झूठा था

 

तेरे जिस्म के साहिल पर भी

तिष्णा कर्णों का प्यासा था

19. साहिल पे कोहराम मचा था

साहिल पे कोहराम मचा था

दरिया रास्ता बदल रहा था

 

वक्त के हातों से पाचम में

सोने का एक थाल गिरा था

 

यह किस को आघोश में ले कर

शाम का चेह-रा दमक रहा था

 

फूलों के नाजूक सीने में

किरणों का नैजा उतारा था

 

शबनम के जगमग शीशे पर

सूरज ने पत्थर मारा था

 

ऐ दिल उस की इतनी चाहत

तु ने उस में क्या देखा था

 

दिल कैसा अहसास था या रब

जैसे कुछ होने वाला था

 

तेज बोहत थी दर्द की आँधी

पत्ता पत्ता लरज रहा था

 

दिल की तन्हाई टूट रही थी

कहिमा-एन जान गिरने वाला था

 

दिल के शीश महेल में तिष्णा

कोण यह पत्थर फेंक रहा था

20. कोई दिवार थी न साया था

कोई दिवार थी न साया था

जिंदगी थी के एक सेहरा था

 

वो मिला दश्त-ए ख्वाब में अक्सर

आने शेरों में जिस को लिखा था

 

जान-ए बज्म-ए हयात तेरे बगैर

मैं हर इक अंजुमन में तन्हा था

 

फिर मुझे मौत भी नहीं आ-ई

क्यों तुझे जिंदगी बनाया था

 

आईने से भला कहा निस्बत

दिल बड़ी खामोशी से टुटा था

 

मैं था पथ-झड़ का बर्ग-ए आवारा

तू खिजाँ की हवा का झोंका था

 

मेरे शानों से तू ने आखिर-ए शब

अपनी जुल्फों को जब सिमटा था

 

एक कयामत सी दिल में जगी थी

ऐ महशर सा मुझ पे गुजरा था

 

चाँद में भी तेरी शबाहत थी

फूल तेरी महेक से महेका था

 

अब सिर-ए बज्म है वो हशर बदोश

वो जो तन्हाइयों में खिलता था

 

मुझ को दीजिये सजा-ऐ जुर्म सदा

में ने कफ्ल-ए सकूत तोडा था

 

मैं ने ही तैरगी के काइमों पर

रोशनियों का तीर फेंका था

21. मताये जान सिर-ए बाजार लूट-वा-ने को जी चाहा

मताये जान सिर-ए बाजार लूट-वा-ने को जी चाहा

उसी बे महेर के कूचे में फिर जाने को जी चाहा

 

शिकस्त-ए दिल की खामोशी गिरां कुछ इस कद्र गुजरी

दूकान-ए शीशा गर पे संग बरसने को जी चाहा

 

कहीं का भी ना रखा तन्हा-ए अहसास ने मुझ को

मेरा हर फूल के हमरा मुरझाने को जी चाहा

 

यह अनरोहे फरोंघ-ए आगाही भी एक कयामत है

हजारों बार इस जीने से मर जाने को जी चाहा

 

हजूम-ए यास ने जब अश्क भी छोड़े ना आँखों में

लब-ए गुल पर हंसी बन कर बिखर जाने को जी चाहा

 

फिजा-ऐन चुप हैरासां शहर गलियाँ दम-बा-छोड़ तिष्णा

मेरा संग सदा ऐसे में बरसने को जी चाहा

22. तुझ को अपना समजा था

तुझ को अपना समजा था

मैं कैसा दीवाना था

 

मैं था रेत किनारों की

तू एक चड़ता दरिया था

 

सहराओं की प्यास था मैं

तू सावन की बरखा था

 

दश्त-ए बला की धुप था मैं

तू नजरों का धोका था

 

मैं था बर्ग-ए आवारा

तू पुरवा का झोंका था

 

तुझ को ख्वाब में देख के मैं

गहरी नींद से चौंका था

 

मैं ने तुझ को यूँ देखा

जैसे एक सपना था

 

मैं ने अपनी गजलों में

तेरा रूप सजाया था

 

राहील-ए मोहबत पर रख कर

पहर-रों तुझ को पर्हता था

 

लफ्जों के पे-रहूं से

मैं ने तुझको धानम्पा था

 

मेरी फिक्र की मस्नाध पर

एक तू ही तू बैठा था

 

मैं खुद से भी रूठ गया

तुझे मनाने आया था

 

दुनिया छाओं में बैठी थी

मैं ने पैर लगाया था

 

मेरे जिस्म के सहरा पर

तेरे प्यार का साया था

 

तेरी जुल्फ की छाओं में

तिष्णा चैन से सोया था

23. हम को बना दिया है जमाने ने खुद-पसंद

हम को बना दिया है जमाने ने खुद-पसंद

करते हैं अपने आप में तुझ को तलाश हम

 

कांधा न दे सका हमें यह शहर-ए अशनां

तनहा उठा-ए फिरते रहे अपनी लाश हम

 

ले जाये देखें कहाँ यह सिर-सिर-ए हयात

किस दश्त में न जाने रखें बो-दो-बश हम

 

शीशे का जिस्म ओढ़ के निकले थे शहर में

अब क्या गिला करें के हुए पाश पाश हम

 

है कारोबार-ए जीस्त में हम से हम-हमी

ऐ दोस्त नब्ज-ए वक्त का हैं एर्ता-आश हम

 

जो हो सकी ना वक्त के मरहम से मंदमिल

हैं चारा-ए हयात की ऐसी खराश हम

 

तिष्णा हमारे नाम पे लगती हैं बारियाँ

दस्त-ए कुमार बाज में हैं गोया ताश हम

24. कयामत से अपने कोई तो ऊंचा दिखा-ई दे

कयामत से अपने कोई तो ऊंचा दिखा-ई दे

हम देखते रहे कोई हम सा दिखाई दे

 

सूरज के डूबने पे यह नक्शा दिखाई दे

पै-रों से बढ़ कर पैर का साया दिखाई दे

 

पत्थर यह किसने फेंका है यादों की झील में

धुंदला सा एक अक्स लराजता दिखाई दे

 

धरा है खुशियों ने फरेब-ए नज्र का रूप

रैग-ए रवां भी प्यास में दरिया दिखाई दे

 

देखि है हम ने वस-अतः-ए सहराये जिंदगी

जेरा भी अपने आप में दुनिया दिखाई दे

 

मा-ए तमाम में हो तेरा पर तू-ए-जमाल

एक रोज तोह यह चाँद भी तुझ सा दिखाई दे

 

तिष्णा हमें यह किस ने खुद्दारा बना दिया

हर आईने में अपना ही जलवा दिखाई दे

25. चूमे है नज्र वो लब-ओ रुखसार अभी तक

चूमे है नज्र वो लब-ओ रुखसार अभी तक

आँखों मैं है एक लम्हा-ए दीदार अभी तक

 

चमकी थी कभी बर्क नज्र खैमा-ए जान पर

लर्जां हैं मगर रूह की दिवार अभी तक

 

बजती हैं मेरे कान में अब तक तेरी सांसें

सुनता हूँ तेरे कुर्ब की झंकार अभी तक

 

फूलों से कभी एक ता-लुख था हमारा

दामन से उलझता है सिर-ए खर अभी तक

 

खून-ए गुल वाल-वाला से जो गुल रंग हुई थी

है दस्त-ए सबा में वही तलवार अभी तक

 

ओझल है निगाहों से वो एक साज मुजसिम

एक मौज-ए सदा है पेस-ए दिवार अभी तक

 

सूरज तू सवा नैजे पे आ पहुंचा है तिष्णा

दिखे न मगर सुबह के आसार अभी तक

26. तबिश-ए खून-ए शाइदान-ए वफा रहने दो

तबिश-ए खून-ए शाईदान-ए वफा रहने दो

मेरे खूनों पे कफ-ए दस्त-ए हिना रहने दो

 

जुल्फ से शोला-ए आरिज को ढका रहने दो

इस दहकते हुए सूरज पे घटा रहने दो

 

बुज ग-ई शमा-ए हरम गुल हैं कलीसा के चराग

दर-ए मैखाना तू इस वक्त खुला रहने दो

 

ना तुम्हें इश्क से निस्बत न हमें गम से फरार

रोज का अब नया एहाद-ए वफा रहने दो

 

हो चुके शहर-ए निगारां के दरीचे वीरान

कोई पैगाम न ले-आये गी सबा रहने दो

 

कुचा-ए इश्क में बेनाम-ओ निशान है तिष्णा

इस को ना वक्फ-ए अदाब-ए वफा रहने दो

27. वाकिफ मसलुक रिंदाना तो बन लेने दो

वाकिफ मसलुक रिंदाना तो बन लेने दो

हम को खाक-ए दर-ए मैखाना तो बन लेने दो

 

हासिल-ए मैं नही हो सकता अभी जर्फ-ए सिफाल

कोजा-ए खाम को पैमाना तो बन लेने दो

 

कब भला हम ने परिस्तिश से किया है इंकार

अपनी महफिल को सनम खाना तो बन लेने दो

 

हम रखें गे गम-ए खाना को दिल-ओ जान से अजीज

गम-ए ऐयाम से बेगाना तो बन लेने दो

 

देखना टपके गा हर हल्का-ए जंजीर से खून

नए गिरफ्तार को दीवाना तो बन लेने दो

28. हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

सूरत-ए रंग-ए हया रुख पे बिखेर जाऊँगा

 

तू मुझे ढूंढता रह जाये गा मंजिल मंजिल

मैं तो झोंका हूँ दबे पाओं गुजर जाऊँगा

 

डूब जाऊँगा मैं लम्हों के समंदर में तो क्या

कुल्जुम-ए वक्त को पयाब तो कर जाऊँगा

 

यह मुसाफत के केरे कोस यह राहों का अजाब

दस्त-ए बे-साया के अशोब से मर जा-ऊँ गा

 

ले उड़े गा मुझे फिर कोई हवा का झोंका

मुझे रैग-ए रवां बन के बिखर जा-ऊँ गाA

29. हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

हर्फ-ए इजहार हूँ मै दिल में उतर जाऊँ

सूरत-ए रंग-ए हया रुख पे बिखेर जा-ऊँ गा

 

तू मुझे ढूंढता रह जाये गा मंजिल मंजिल

मैं तो झोंका हूँ दबे पाओं गुजर जा-ऊँ गा

 

डूब जा-ऊँ गा मैं लम्हों के समंदर में तो क्या

कुल्जुम-ए वक्त को पयाब तो कर जा-ऊँ गा

 

यह मुसाफत के केरे कोस यह राहों का अजाब

दस्त-ए बे-साया के अशोब से मर जा-ऊँ गा

 

ले उड़ेगा मुझे फिर कोई हवा का झोंका

मुझे रैग-ए रवां बन के बिखर जा-ऊँ गा

30. अनार के जख्म गिरेबां के तार तार में हूँ

अनार के जख्म गिरेबां के तार तार में हूँ

मैं बज्म-ए गुल में था अब कंज बे बहार में हूँ

 

यहाँ तो जो भी मिला अजनबी मिला मुझ को

यह शहर कोण सा है मैं यह किस दियार में हूँ

 

बुझा के मुझ को गुजर जाये गा कोई झोंका

चराग-ए राह हूँ हवाओं के इंतजार में हूँ

 

कभी इधर से गुजर ऐ निगार-ए शश्र-ए जमाल

तुझे खबर भी है मैं तेरी रहगुजर में हूँ

 

मेरी तलाश है जिस को वो ढूंढ ले मुझ को

गुलों के रंग में हूँ निखत-ए बहार में हूँ

 

दिया है तना-ए ओ अमांदगी सभी ने मुझे

मैं आने वाले मुसाफिर के इंतजार में हूँ

 

अता हू-ई थी मसीहा को जिस की पैश रावी

सलीब उठा-आये हुए मैं उसी कतार में हूँ

 

खुद अपने जिस्म के मरगध में दफन हूँ तिष्णा

मैं जी रहा हूँ मगर जीस्त के मजार में हूँ

31. खून-ए दिल कत्ल-ए तमना हो गा

खून-ए दिल कत्ल-ए तमना हो गा

इश्क में देखिये क्या क्या हो गा

 

मेरी इस चाक गिरेबानी पर

शहर में एक तमाशा हो गा

 

ऐ मेरे ख्वाब की ताबीर बता

ख्वाब तो नाईब ही तो देखा हो गा

 

जब किसी ने तेरी जुल्फों में कभी

प्यार से फूल सजाया हो गा

 

अश्क आंखों में भर आ गए हों गे

दिल में एक दर्द सा उठा हो गा

 

आ गया हो गा तुझे मेरा खयाल

जब सितारा कोई टुटा हो गा

 

था मुझी तक वो सीत्म मेरे खयाल

फिर कोई दिल ना दिखाया हो गा

 

मेरा दिल तोड़ के तिष्णा उस को

प्यार पत्थर पे भी आया हो गा

32. जमीन पे थे जो आसमान क्या हुए

जमीन पे थे जो आसमान क्या हुए

वो अपने सारे मेहरबान क्या हुए

 

समंदरों में जिन से एक जश्न था

वो किश्तियाँ वो बादबान क्या हुए

 

हरी भरी थी जिन दम से खेतियाँ

वो अर्क जबीन किसान क्या हुए

 

वो क्या हु-ईं मोहब्बतों की बस्तियाँ

मकीन वो क्या हुए मकान क्या हुए

 

वो जिन के दम से थें लहू में गर्दिशें

वो शा-इरान-ए खुश बयान क्या हुए

 

कहाँ ग-ईं शिकारियों की टोलियाँ

बुलंदियों के वो मचान क्या हुए

 

यह किस मकाम पर हयात आ ग-ई

यकीन वो क्या हुए गमान क्या हुए

 

वो जिंदगी की आन बाण क्या हु-ई

वो नाम क्या हुए निशान क्या हुए

 

जला के आये थे जो अपने बादबान

वो शेर-ए दिल जहाज-रां क्या हुए

 

तरसते थे मंजिलें जो दश्त में

वो काफ्ले वो सारबान क्या हुए

33. पनाह-गाह के अंदर कोई ना देख सका

पनाह-गाह के अंदर कोई ना देख सका

छुपे हुए थे जो खंजर कोई ना देख सका

 

लहू लहान था मैं और सब तमाशाई

किधर से आये थे पत्थर कोई ना देख सका

 

नजर लगाए रहे दूसरे के कयामत पर

किसी को अपने बराबर कोई ना देख सका

 

हर एक शक्स था अपनी होवीस का जिंदानी

हिसार-ए जात से बाहर कोइ ना देख सका

 

सभी ने देखा बरसते हुए घटाओं को

हुआ है खुश्क समंदर कोई ना देख सका

 

सभी से दाद्द मिली सिर खेरोई की तिष्णा

चले जो रूह पे नश्तर कोई ना देख सका

34. वोह जिस के हाथ में पत्थर है यारो

वोह जिस के हाथ में पत्थर है यारो

वोही एक शक्स मेरा आशना है

 

खफा होते हैं क्यों अहबाब हम से

हमारी जात तो एक आईना है

 

मुझे भी अब तुम्हारी बे रूखी पर

मोहबत का गुमान होने लगा है

 

तुम्हें भूले हुए बैठाता था लेकिन

बोहत याद आये तुम जब दिल दुखा है

 

जगाओ दावेर-ए महशेर को तिष्णा

सवा नैजा पे सूरज आ गया है

35. लूट गया राहों में रख्त-ए जान बोहत

लूट गया राहों में रख्त-ए जान बोहत

हो गए हम बे सिर-ओ समाह बोहत

 

रख्स था आँखों में नंगी रूह का

ताह लिबासों में भी हम उरियाँ बोहत

 

कीजिए अब जेब-ओ दामन का हिसाब

मौसम-ए वहशात का था अरमान बोहत

 

हम असीरान-ए मोहबत के लिए

एक तेरी आघोश का जिन्दान बोहत

 

दोस्तों ने आखिर दिल रख लिया

हम को लूट जाने का था अरमान बोहत

 

तेरे वादों का उसे है ऐतबार

तिष्णा अलामताब है नादान बोहत

36. यह कुल्जुम-ए हयात तो पायाब था मगर

यह कुल्जुम-ए हयात तो पायाब था मगर

हर लम्हा मेरी फिक्र को गहराई दे गया

 

फिर उस के बाद कितने मनजीर नज्र में आये

बे नूर सा-आतों को वो बिना-ई दे गया

 

मरहम बरसात था जो बजाहिर वो आशना

जाने लगा तो जख्म-ए शनासा-ई दे गया

 

क्या गमगुसार था के मेरा हाल पूछ कर

कुछ और दिल को रंज-ए शकायबा-ई दे गया

 

वो महफिलों की जान था रौनक शबों की था

जो शक्स मुझ को तोहफा-ए तनहा-ई दे गया

37. निशात-ए गर्मी बज्म-ए खयाल देखें गे

निशात-ए गर्मी बज्म-ए खयाल देखें गे

दिये बुझा के तेरे खाबोह-खयाल देखें गे

 

मुसाफत-ए लब-ओ आरिज तमाम है तू सही

तुझे भी ए रोष माह-ओ साल देखें गे

 

बहार पर गुल-ए दोशीजगी है वस्ल की शब

माल हुस्न का हुस्न-ए माल देखें गे

 

बियाज-ए हाफिज-ए शिराज हैर ओह-ए जीबा

वर्क वर्क पे मोहबत की फाल देखें गे

 

लरजते होटों पे तम्हीद-ए इल्तिजा हो गी

चमकती आँखों में हुस्न-ए सवाल देखें गे

 

नजूल-ए आया-ऐ दोशीजगी के दिन आये

किताब-ए इश्क का हरुफ-ए कमाल देखें गे

 

बडा है नाज तुम्हें अपने आप पर तिष्णा

तुम्हें भी हम सिर-ए शहर जमाल देखें गे

38. जिन्हें भूलने में यारो बड़े जमाने लगे

जिन्हें भुलाने में यारो बड़े जमाने लगे

जो दिल दुखा तो वही लोग याद आने लगे

 

मैं जिस गली से भी शहर-ए जमाल में गुजरा

खिले गुलाब मंदैरों पे मुस्कराने लगे

 

दियार-ए फिक्र में यादों की दाईवियान उतरें

गए दिनों के फसाने बड़े सुहाने लगे

 

सितम यह कम तो नही है के अजनबी बन कर

मेरे करीब से गुजरे तो मुस्कुराने लगे

 

हमारे चेहरे पे क्या लिख दिया मोहब्बत ने

तमाम दोस्त हमें आईना दिखाने लगे

39. भूले बिसरे ख्वाब सुहाने याद आये

भूले बिसरे ख्वाब सुहाने याद आये

आज वोह सारे यार पुराने याद आये

 

शहरों की तहजीब थी जिन की हर लघजिश

वह सोदा-ई वोह दीवाने याद आये

 

झाँक के देखा जब भी दिल के दाघों में

कैसे कैसे आईना खाने याद आये

 

अनजाना एक शक्स मिला था आज मुझे

सब चहरे जाने पहचाने याद आये

 

याराने की धुप थी जिन के चहरों पर

तुम से मिल कर वोह बेगाने याद आये

 

किसी से मिलते किसी को जब देखा तिष्णा

गाये दोनो के सब अफसाने याद आये

40. कुछ रख्त-ए सफर भी साथ ले लो

कुछ रख्त-ए सफर भी साथ ले लो

रास्ते में ही रात हो गयी तो

 

क्या हो गए चाँद वो तुम्हारे

ऐ शहर-ए जमाल के दरेचो

 

यह तो नहीं चाहतों का लहजा

एक बार तो प्यार से पुकारो

 

क्या हो गए जो आग फैल निकली

हमसाये का घर जलाने वालो

 

बे नूर अब हो चली हैं सुभाएँ

कुछ शर्म करो ऐ रोशनी फरोशो

 

कब तक यह जमीन पे सजदा रैजी

उठो और आसमान को छु लो

 

वो भी ना रहे जो सेज पर थे

गमगीन न हो लहद के फूलो

 

वाकिफ है यह सारी मंजिलों से

तिष्णा को भी साथ साथ रखो

41. तेरी सूरत का यह फासू कब तक

तेरी सूरत का यह फासू कब तक

आईना देखता रहूँ कब तक

 

केर्या केर्या उडी है दर्द की धुल

शहर-ए बे महर में रहूँ कब तक

 

कर लिया मैं ने तार तार बदन

बे लीबासी भी आये जनून कब तक

 

जर्ब-ए तिशा-ए फघान-ए संग भी सुन

जब्त-ए गम से मैं काम लूँ कब तक

 

दोस्तो बज्म-ए शब नसीबां में

रोशनी के लिए जलूं कब तक

 

बज्म मे तेरे वास्ते तिष्णा

आखिर्ष जाम-ए वझगुन कब तक

42. तुम होते या तुम सा होता

तुम होते या तुम सा होता

काश कोई तो अपना होता

 

प्यार का दावा करने वालो

मेरा दर्द बताया होता

 

ढलती रात की तन्हा-ई में

चुपके से तो आया होता

 

आखिर-ए शब जिंदान में कोई

ख्वाब-ए गिरां से चौंका होता

 

यह तन्हा-ई यह सन-नाटा

जोर से दिल ही धड़का होता

 

रुकते नहीं रोकने से आँसू

तुम ने हाल ना पूछा होता

 

रुखसत हो कर जाने वाले

मूड कर भी तो देखा होता

 

तूम मक्तल में ही आ जाते

कोई तो वादाह ईफा होता

 

अपनी नींद के रंग महल में

मेरा सपना देखा होता

 

मैं ने जो कुछ भी सोचा है

दीवारों पर लिखा होता

 

जाने की जल्दी ही क्या थी

तुम ने तष्ना रोका होता

43. लफ्ज-ओ मानी में कोई रब्त तो रखा होता

लफ्ज-ओ मानी में कोई रब्त तो रखा होता

जो भी कुछ तू ने कहा मैं भी समझा होता

 

तुझ पे भी हश्र-ए जुदा-ई कभी गुजरा होता

मिल के तू भी तो किसी शक्स से बिछड़ा होता

 

हैं कहीं नोक-ए दशनान कहीं बारिश-ए संग

तू ने इस शहर को मक्तल ना बनाया होता

 

जुल्फ-ओ आरेज का तसवर लब-ओ रुखसार के ख्वाब

बाद-ए जना मुझे दुनिया का भी रखा होता

 

तुझ को भी वक्त की नब्जों का तो होता अहसास

मैं ने जो सोचा था दीवारों पे लिखा होता

 

जिस से खुर्शीद की पलकों में नरमी आजाती

आरिज-ए गुल पे शबनम का वो कतरा होता

 

उन चरागों के बुझने से रूकेगीं आ सहर

रात रखनी है तो सूरज को बुझाया होता

44. वोह कह हर अहद-ए मुहब्बत से मुकरता जाये

वोह कह हर अहद-ए मुहब्बत से मुकरता जाये

दिल वो जालिम के उसी शक्स पे मरता जाये

 

मेरे पहलू में वो आया भी तो खुशबू की तरह

मैं उसे जितना समैंटून वो बिखरता जाये

 

खुलते जायें जो तेरे बंद-ए काबा जुल्फ के साथ

रंग-ए पैरहन-ए शब और निखरता जाये

 

मश-हतर हो कई बड़े और नाको नमी-ए इश्क

दिल भी शाइस्ता गम हो के संवरता जाये

 

इश्क की बज्म निगाही से हिना हो रुखसार

हुस्न वो हुस्न जो देखने से निखरता जाये

 

क्यूँ न हम उस को दिल-ओ जान से चाहें तिष्णा

वो जो एक दुश्मन-ए जान प्यार भी करता जाये

45. केर्या जान को अंधेरों से बचाये रखना

केर्या जान को अंधेरों से बचाए रखना

दिल की कंदील हवाओं में जलाए रखना

 

जिंदगी को कहीं मिल जाए ना साहिल का सकूत

तुम हर एक मौज में तूफान उठाये रखना

 

कोई आये गा उठाये हुए काँधे पे सलीब

आज मक्तल के दर्द बाम सजाये रखना

 

गर्मी शहर-ए मोहब्बत है उसी के दम से

दिल की महफिल को बाहर रंग जमाये रखना

 

वो मेरा उन से शिकायत भी न करने का खयाल

और वो उन का निगाहों को झुकाये रखना

 

काफ्ले गुजरें गे बे हाल इधर से यारो

दश्त-ए आशोब मैं तुम साये बिछाये रखना

 

कुछ निशानी तो रहे मौसम-ए गुल की तिष्णा

एक पत्ता तो हवाओं से बचाये रखना

46. किस ने दरवाजा-ए अहसास पे दस्तक दी है

किस ने दरवाजा-ए अहसास पे दस्तक दी है

गुम्बद-ए जात में फिर एक सदा गुंजी है

 

लोह-ए दिल पर मोहब्बत से मेरा नाम ना लिख

मौजा-ए रैघ पे तस्वीर कहा रहती है

 

तेरी आवाज खनकती है सिर-ए पर्दा-ए जान

दश्त-ए दिल मे जर्स-ए गुल की सदा आती है

 

अब भी कुछ संग इधर आते हैं गाहे गाहे

शहर खबान में अभी रम्स-ए वफा बाकि है

 

दिल को आ जाता है सूखे पत्तों का खयाल

काँप जाता हूँ मैं जब तेज हवा चलती है

 

क्या कहें दामन-ए गुल चाक हुआ है यारो

खाक उड़ाती हु-ई क्यों मौज-ए सबा गुजरी है

 

नाज है मुझ को भी ऐजाज-ए मसीहा-ई पर

मैं ने अल्फाज में अहसास की जान डाली है

 

मेरे हातों में ही अब संग सजें गे तिष्णा

मैं ने ही आईना खानों की बना रखी है

47. तू फूल फूल रहे खुशबुओं के आँचल में

तू फूल फूल रहे खुशबुओं के आँचल में

मैं खार खार हूँ आबलों के जंगल में

 

तेरा बदन कह तेरे पैराहन से छनता है

कह जैसे चांदनी लिपटी हो सुर्ख मलमल में

 

मेरी सहर के उजाले हैं तेरे आरिज पर

मेरी खुशबू की सियाही है काजल में

 

हजूम-ए मह वाशां था वफा के पनघट पर

बदन की प्यास भरी थी सभी की छागेल में

 

अय निम शब के मुसाफिर बताह कीधर जा-ऐं

छुपा लिया है चरागों को तू ने आँचल में

 

हर एक शाख के दिल में है रंग-ओ बू की तडप

नमो का झोक है रक्साँ हर एक को नप्ल में

 

यह आज छूटी है किस के लहू की महताबी

यह किस ने जश्न-चरागाँ किया है मक्तल में

 

तोह इस जमीन में चिंगारिओं की फसल ना बो

उगी जो आग तो फैले गई सरे जंगल में

 

जमीन की प्यास बुझे भी तो किस तरह तिष्णा

कह एक बूंद भी बाकि नही है बादल में

48. ना दोस्ती ना मोहब्बत ना आशनाई गई

ना दोस्ती ना मोहब्बत ना आशनाई गई

हमारे साथ हमारी शिकस्त पाई गई

 

वो जिस का नाम कयामत रखा है दुनिया ने

उठे गी तेरी गली से अगर उठाई गई

 

बना के आलिम-ए हस्ती को आईना खाना

मेरी शबीहा मुझे बारहा दिखाई गई

 

क्या अज्ल से मुझे गुम्बद-ए हयात में बंद

वो बाजगश्त हू-ई तब-ए लब-ए कुशाई गई

 

उठे हैं लोग बनेराज-व खुद शनासाई

अमीर-ए शहर बस अब तेरी पेशवाई गई

49. क्या खेलें दर्या के जोहर दश्त में

क्या खेलें दर्या के जोहर दश्त में

रेत का है एक समंदर दश्त में

 

रोशनी भी आग बरसाने लगी

आ गया सूरज भी सिर पर दश्त में

 

गुलिस्तां है बरगरों की छाउनी

काद निकालेंगे सनोबर दश्त में

 

छोड़ आये कब का शहर-ए आशना

कौन बरसता है पत्थर दश्त में

 

ख्वाब के सूरत गरो देखो मुझे

मुझ से हैं यह सारे मंजर दश्त में

 

देरनि है यह बगुलों का धमाल

हैं सब के और तेवर दश्त में

50. कहो यारो तुम्हें कैसा लगे है

कहो यारो तुम्हें कैसा लगे है

वो जालिम जो मुझे अच्छा लगे है

 

माहिने भर में यह महताब लोगो

बस एक दो दिन ही उन जैसा लगे है

 

जहाँ भटका था मैं पहले भी ऐ दिल

मुझे तू यह वही रास्ता लगे है

 

कयामत फिर कोई टूटे गी दिल पर

मुझे एक अजनबी अपना लगे है

 

है इबरत को माल-ए गुल ही काफी

मुझे हँसते हुए डर सा लगे है

 

वो है एक बाब-ए तारीख-ए गुलिस्ताँ

तुम्हें जो बर्ग-ए आवारा लगे है

 

गजब लोगो महाबत आशना दिल

उसे उतरा हुआ शीशा लगे है

 

खुदा रखे मेरा वो दुश्मन-ए जान

मुझे तो जान से प्यारा लगे है

 

ना जाने तुम ने किया तिष्णा में देखा

हमें तो कोई दीवाना लगे है

51. इस ने भी दिलदारी की

इस ने भी दिलदारी की

जो मेरा गमख्वार न था

 

मेरे कयामत से ऊँचा

कोई सतून-ए दार ना था

 

कब हम से इस जिंदान में

जश्न-ए सलीब-ओ दार ना था

 

लोगो हम थे सूली पर

मक्तल में तहवार न था

 

उस रास्ते पर चल निकले

जो रास्ता हमवार ना था

 

बड़ी बड़ी दस्तारों में

एक भी तो सरदार न था

 

नमों की फरिश्तें थें

जजों में ईसार ना था

 

बज्म में खुश गुफ्तार कोई

महरूम-ए गुफ्तार ना था

 

महफिल थी वो यारों की

शाहों का दरबार ना था

 

हम खुद अपने दुश्मन थे

कोई पास-ए दिवार ना था

52. पत्ती पत्ती बिखर गई

पत्ती पत्ती बिखर गई

इतनी महँगी एक हँसी

 

कितने दुःख दे जाती है

याद कोई भूली बसरी

 

जिस को चाहा था मैं ने

मूरत थी वो पत्थर की

 

फिर ना कभी देखा उस को

दीध की महफिल फिर ना जमी

 

शाम के धुंदले साहिल पर

मिली थी हम को एक लड़की

 

नंगे पा-ओन वो सर्दी में

ठंडी रेत पे बैठी थी

 

बदन सुनहरा कुंदन सा

तपी हु-ई वो चाँदनी थी

 

सुलग रही है तन मन में

उस की साँसों की गर्मी

 

लरज रहे थे लब उस के

आँखें थीं भीगी भीगी

 

मैखानों के बस किन अहि

तिष्णा तेरी तिष्णा लबी

53. हम तुम रोज ही मिलते थे

हम तुम रोज ही मिलते थे

जज्बे कितने सच्चे थे

 

प्यार की पहली बारिश में

देर तलक हम भीगे थे

 

जिस्म का जंगल प्यासा था

रूह पे बादल बरसे थे

 

देर तलक खामोशी से

दोनो चाँद को तकते थे

 

फिर अपनी खामोशी पर

हम दोनो हंस देते थे

 

तनहा-ई के सहरा में

यादों के सुनते थे

 

मेरे घर के आंगन में

कितने पत्थर बिखरे थे

 

अब वो मुझे लौटा देना

जो खत तुम को लिखे थे

 

बीच समंदर में रह कर

बून्द बून्द को तरसे थे

 

पताह चला ताबिरों से

झूठे सपने देखे थे

 

देर तलक हम रातों को

तेरा रस्ता तकते थे

 

तिष्णा जिन से चश्मक थी

वो सब यार पुराने थे

54. गर्मी सी तेरे जिस्म की महसूस हुई है

गर्मी सी तेरे जिस्म की महसूस हुई है

घबरा के क-ई बार मेरी आँख खुली है

 

आया है वो खुर्शीद काबा ख्लोवत जान में

यह पैरा-हूँ-ए शब के मुस्काने की घडी है

 

खेंचे है तसवर लब-ओ-खिसार के नक्शे

देखा नही उस को मगर आवाज सुनी है

 

आ-आये हैं देराइचों में नजर चाँद सितारे

जिस सिम्त से गुजरा हूँ बड़ी धूम मची है

 

ऐ शहर-ए निगरान के सफीर मुझे देखो

एक उमर मेरी जोहरा जमालों में कटी है

55. मुझ से मू फेर के जाने वाले

मुझ से मू फेर के जाने वाले

क्या कहें गे यह जमाने वाले

 

तू मेरी सोच से बढ़ कर निकला

रिश्ता-ए दर्द निभाने वाले

 

क्या हुए तेरी गली के वह लोग

वो जो थे हश्र उठाने वाले

 

मुझ को भी अज्न-ए तबसुम देता

बाघ में फूल खिलाने वाले

 

तू मेरी रूह में उठ-रहा होता

मेरे पहलू में सामने वाले

 

मेरी दुनिया में अँधेरा क्यों है

माह-ओ खुशीद बनाने वाले

 

अब नहीं ताब-ए समा-अत मुझ में

किसा-ऐ दर्द सुनाने वाले

 

आखिरश सिख लिए तू ने भी

सरे अंदाज जमाने वाले

 

बन के ताबीर भी आया होता

नित नए ख्वाब दिखाने वाले

56. हवाए दर्द कुछ ऐसी चली थी

हवाए दर्द कुछ ऐसी चली थी

तनाब-ए खैमा-ए जान खैंच रही थी

 

किसी को महेरबान समझा था हम ने

वो सारी ख्वाब की सूरत गीरी थी

 

चली अब हसरतें भी शहर-ए दिल से

यह बस्ती कितनी मुश्किल से बसी थी

 

जहाँ देखा था एक दिन चाँद हम ने

वो खिड़की आज भी सुनी पड़ी थी

 

जो थी एक दिन मुलाकातों की जन्नत

वो शायद मेरी ख्वाबों की गली थी

 

जलूस-ए आश्कान निकला था तिष्णा

तमाशे को बड़ी खाकात कड़ी थी

56. केर्या-ए जान तुझे हम याद तो आते हों गे

केर्या-ए जान तुझे हम याद तो आते हों गे

कभी अफसानों की सूरत कभी ख्वाबों की तरहा

 

दोस्तों यह भी मोहब्बत की जजा है शायद

हम पे हर लम्हा गुजरता है अजाबों की तरहा

 

आ-गाही जहेल-ए नुमाईश के बोहत काम आ-ई

हम सजाये ग-ये तख्तों में किताबों की तरहा

 

सिर-खेरो-ई तो मुकदर है उसी का यारो

जो कफ-ए कार में खिलता है गुलाबों की तरहा

 

वो के जिन से थी कभी अंजुमन अरा-ई शब

हम से अब मिलते हैं वो बून्द किताबों की तरहा

 

जर्फ हर जाम का हम देख चुके हैं तिष्णा

हम हर एक बज्म में छलकें हैं शराबों की तरहा

57. शराप

तुझे भी फूंक के रख दे यह शोला-ए अफकार

तेरा बदन भी मुजसिम शहरार बन जाये

अजाब-ए जीस्त में हो तू भी मुब्तला एक दिन

जो फूल हात में आये वो खार बन जाए

हो तेरे जैब-ओ गिरेबान भी तार तार एक रोज

तेरे लिए तेरा झूला भी दार बन जाए

यह बद-दुआ है मेरी तू भी हो असीर-ए वफा

जो तेरे दिल में है वो नफरत वो प्यार बन जाये

58. हर एक साँस पे पहरा बिठा दिया जाये

हर एक साँस पे पहरा बिठा दिया जाये

फिजा में दाम-ए सिमा-उठ बिछा दिया जाये

 

यह हुक्म है कह मकजेल हूँ सारे दरवाजे

तमाम शहर को जिंदान बना दिया जाये

 

जो लब कुशा हो कोई काट दो जबान उस की

जो सिर बुलंद हो वो सिर झुका दिया जाये

 

को चराग सिर-ए शाम हो कहीं रोशन

चली है रस्म कह वो घर जला दिया जाये

 

बुलाओ फिर सिर-ए मक्तल मेरे रकीबों को

हिसाब-ए कर्ज-ए रफीकान चूका दिया जाये

 

जो राह-जनों से बचा ला-आये थे वो नकद-ए हयात

बनाम केर्या यारां लूटा दिया जाये

 

शेर-अर की आग से पिघला ना पथरों का वजूद

गरूर-ए संग को तिष्णा मिटा दिया जाये

59. मिसाल-ए मौज-ए सबा हम चमन में आये थे

मिसाल-ए मौज-ए सबा हम चमन में आये थे

बहार बन के तेरी अंजुमन में आये थे

 

गुबार-ए शाम-ओ सहर था हमारे चहरे पर

हम आफताब थे लेकिन गहन में आये थे

 

शिकस्त गाम लहू पेराहन रस्न बे ग्लो

शिकर हो के गजलन खतां में आये थे

 

लुटा के काफ्ला-ए जान बनाम-ए देर-ओ हरम

घरीब-ए शहर, दियार-ए वतन में आये थे

 

हंसा था हम पे भी तिष्णा हजूब कम नजराँ

ले आये सलीब-ए सुखन शहर फन में आये थे

60. माल सुबह बाहरां तुम्हें मुबारक हो

माल सुबह बाहरां तुम्हें मुबारक हो

यह चाक चक गिरेबान तुम्हें मुबारक हो

 

शिकस्त-ए गोहर शबनम पे रो रहा हूँ मैं

तबसुम-ए गुल-ए खानदान तुम्हें मुबारक हो

 

लहू लहू यह उजाला यह जखम जखम चराग

यह जश्न-ए शाम-ए शबस्तान तुम्हें मुबारक हो

 

शिकस्त-ए आईना दिल ने यह सदा दी है

यह शोर-ए बज्म-ए निगरान तुम्हें मुबारक हो

 

हमारे साथ है तष्णा हजूम-ए दिल जिदगान

जलूस-ए तख्त-ए सुलैमान तुम्हें मुबारक हो

61. गजल-ए शौक है आवारा खतें कब से

गजल-ए शौक है आवारा खतें कब से

अजाब-ए जीस्त में है पैकर-ए बदन कब से

 

मैं जबर-ए जात के बन में हूँ कब से आबलापा

है तार तार अना का यह पैराहूं कब से

 

उदास चेहरों पे लिखी हुई है महरूमी

है बे चराग दिलों की यह अंजुमन कब से

 

दिया गया है मुझे अपने आप में बन हस

दियार-ए जात मैं फिरता हूँ बे वतन से

 

कभी तो मौजा-ए अबर-ए करम इधर भी नजर

तरस रहा है बहारों को यह चमन कब से

 

कहें हैं दार की बताएं कहें सलीब का जीकर

है दरमियाँ है ही यह किस-सा-ए रसेन कब से

 

मैं अपनी फिकर के जिन्दान में कैद हूँ तिष्णा

है बंद-ए तुख-ओ सलासेल मेरा सुकून कब से

62. इरादा जब भी करता हूँ सफर का

इरादा जब भी करता हूँ सफर का

खयाल आता है तेरी रहगुजर का

 

न थरा-ऐ से थरा शहर-ए दिल में

वो बासी था हा जाने किस नगर का

 

कोई सूरज मुकाबिल आ गया है

शजर से बढ़ गया साया शजर का

 

उसी जानीब रवां है शहर सारा

यह-ही रास्ता है शायद तेरे घर का

 

ना ताह हम से हुआ जो जिंदगी भर

वो सारा फासला था एक नजर का

 

सभी हैं अजनबी तेरी गली में

पता अब किस से पूछूं अपने घर का

63. मैं भी तन्हा था और रात भी थी

मैं भी तनहा था और रात भी थी

तू जो आता तो कोई बात भी थी

 

वो नजर हम से जो कभी ना मिली

वो नजर जान-ए अल्तफात भी थी

 

एक पल में बदल गई दुनिया

तू बताह तो कोई बात भी थी

 

क्या कयामत के तेरे इश्क के साथ

मुझ पे पाबंदी-ए हयात भी थी

 

था वो जिस दम शरीक खुलवात-ए जान

वो घडी शरा-ए कायनात भी थी

 

जाने क्या हो गए वो दिन तिष्णा

जब मोहब्बत शरीक-ए जात भी थी